चँचल मृग-नयनों में बसे, इन अश्को की भाषा समझा दो।
किस-विधि नापोगे प्यार मेरा, रिश्तों की परिभाषा समझा दो॥
कभी-कभी अनजानी सी एक डगर,
पर लगती है कुछ जानी-पहचानी सी,
एक पल में लगता है कोई अपना सा
और हो जाती है हर बात पुरानी सी।
तुम तन से लाख छुपा लो पर, मन की अभिलाषा समझा दो।
किस-विधि नापोगे प्यार मेरा, रिश्तों की परिभाषा समझा दो॥
फ़ासले लाख बढा़यें पर बढ़ नही पाता,
जुदाई में भी इश्क कभी मर नही जाता,
महबूब से जन्नत सी लगती है जिंदगी,
पर तनहाई में एक पल रहा नही जाता।
मुझ बिन उमड़-घुमड़ आई आँखों से,वो जिज्ञासा समझा दो।
किस-विधि नापोगे प्यार मेरा, रिश्तों की परिभाषा समझा दो॥
क्यों पल भर में दूरी बंध जाती है,
एक अनजाने अदृश्य बंधन सी,
फ़िर कैसे बिन मांगे मथ जाती है,
अनचाहे रिश्तों के समुंद्र मंथन सी।
बिन बाँधें बँध जाने वाले इन, रिश्तो की आशा समझा दो।
किस-विधि नापोगे प्यार मेरा, रिश्तों की परिभाषा समझा दो॥
खुद को पाने की कशमकश में,
खो देता है जो अक्सर खुदी को,
ढूँढता फ़िरता है जिस मृग को,
वो बस मिलता है कस्तूरी को,
स्वप्न लोक में मृग-मरीचिका की, घोर निराशा समझा दो।
किस-विधि नापोगे प्यार मेरा, रिश्तों की परिभाषा समझा दो॥
जिन रिश्तों की जड़े होती है हठीली,
टू्टे गमले मॆं भी डाली रहती है गर्विली,
कच्चे धागे से बँधा विश्वास भी टूटता नही,
पानी में भीग गाँठे होती है ज्यादा गठीली,
प्रेम और विश्वास के अभिलाष, प्रेम की अभिप्सा समझा दो।
किस-विधि नापोगे प्यार मेरा, रिश्तों की परिभाषा समझा दो॥
सुनीता शानू