चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Tuesday, August 18, 2009

मासूमियत के हनन की तस्वीर





उम्मीदों और खुशियों से भरी
एक मीठी सी धुन गाता हुआ वह
चलाये जा रहा था
हाथो को सटासट...


कभी टेबिल तो कभी कुर्सी चमकाते

छलकती कुछ मासूम बूँदें
सुखे होंठों को दिलासा देती उसकी जीभ
खेंच रही थी चेहरे पर
उत्पीड़न से मासूमियत के हनन की तस्वीर


मगर फ़िर भी
यन्त्रचालित सा
हर दिशा में दौड़ता
भूल जाता था कि
कल रात से उसने भी
नही खाया था कुछ भी...

एक के ऊपर एक करीने से जमा
जूठे बर्तन उठाते उसके हाथ
नही देते थे गवाही उसकी उम्र की
मासूम अबोध आँखों को घेरे
स्याह गड्ढों ने भी शायद
वक्त से पहले ही
समझा दिया था उसे
कि सबको खिलाने वाले उसके ये हाथ
जरूरी नही की भरपेट खिला पायेंगे
उसी को....



सुनीता शानू

अंतिम सत्य