चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Sunday, August 7, 2011

तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं



ऎसे ही लिख डाली बैठे ठाले..आप भी पढ़ लो बैठे ठाले जी... इस मुई ब्लॉगिंग ने रात के दो बजा दिये...:( ये सब दोस्त लोगों की जिद की वजह से हुआ है...कुछ लिखो कुछ लिखो बस...चलिये शुभरात्री..

जो पास होते हैं वही जब दूर जाते हैं
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं
भीड़ में कोई ही लगता है अपना सा
सभी नज़रों मे कब अपनी समाते हैं


मुझे देख कर उसका सीटी बजा देना
कोई गीत फ़िल्मी अक्सर गुनगुना देना
अकेली देख कर मेरा दुप्पटा उड़ा देना
अकेले में ख्याल सारे गुदगुदाते हैं
तनहाई में अक्सर हमे वो याद आते हैं।


कहा था उसने कि मै खूबसूरत हूँ
प्रेम में लिपटी अजंता की मूरत हूँ 
दीवानगी में जब कभी मुस्कुराती हूँ
देख कर आईने भी कई टूट जाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।


चाँद को देखूं तो चाँदनी दिल जलाती है
उसका नाम ले लेकर सखियां सताती हैं
और नींद भी आंखों से जब रूठ जाती है
रात भर ख्वाबों में वही तो आते जाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।


बचपन में बनाये उस घरौंदे की कसम
पेड़ से तोड़ी कच्ची इमली की कसम
जो साथ खेले थे इक्का दुक्का हम
आज भी वो नीम पीपल बरगद बुलाते है
तनहाई में अक्सर हमें वो याद आते हैं।


अंतिम सत्य