चाय के साथ-साथ कुछ कवितायें भी हो जाये तो क्या कहने...

Friday, January 20, 2012

चाय चाय चाय ! और कोई काम ही नही.?

यह है चाय....

बहुत दिन से सभी एक ही शिकायत कर रहे हैं शानू जी कुछ लिखते ही नही आप और मुझे... सच्ची में चाय के अलावा कुछ काम नही। सारे दिन इसको चाय भिजवानी है उसको भिजवानी है चाय की टेस्टिंग करनी है। अपुन तो पगला गये। मेरा ब्लॉग भी आजकल गाना गा रहा है सूना-सूना लागे.... पर मै भी क्या करूँ ये चाय मुझसे तो छूटती ही नही.. हाहहह आप पक्का मुझे चाय की नशेड़ी बोल देंगें:) 

खैर पच्चीस दिसम्बर को पिलानी में कवि सम्मेलन हुआ। 

सबसे खूबसूरत बात तो यह थी की उस कवि सम्मेलन में मेरे माता-पिता को सादर-सम्मान पूर्वक बुलाया गया था। मेरे लिये इससे बड़ी बात कोई नही थी। कवि सम्मेलन तो बहुत हुए लेकिन मेरे माता-पिता का होना मेरे लिये सबसे बड़ी बात थी।

पिलानी बहुत ही खूबसूरत शहर है। पिलानी मेरी जन्म-भूमि जहाँ मै पली बड़ी हुई  और आज भी मन अटका है मेरी पिलानी में। जब कभी जाना होता है ट्रेन से लेकर घर तक सब  अनजाने चेहरे भी जाने-पहचाने लगने लगते हैं। 

आईये आज थोड़ी बहुत पिलानी की सैर कर ही ली जाये...

यह सरस्वती मंदिर का मुख्य द्वार है
अरे रे यह हाथी को देख कर यह मत समझ लीजियेगा की हम मायावती का समर्थन कर रहे हैं। ऎसे तो हाथों पर दस्ताने भी नही हैं भई कांग्रेस का समर्थन भी तो नही न है....:)


मै इन जनाब की चाची हूँ और यह खड़े हैं शिव-गंगा मंदिर के सामने

बहुत ही खूबसूरत जगह है यह शिव-गंगा नहर जो एक बार चला जाये बार-बार जाने का मन हो जायेगा।

हर्षवर्धन बिड़ला जी और मै...
पिलानी का नाम पहले दलेल गढ़ था सुना है कि पिलानी नाम बिड़लो का ही दिया गया है। बिड़ला जी ने वैसे पिलानी की रूपरेखा ही बदल दी है।  मुझे तो बस इतना याद है कि हर्षवर्धन बिड़ला जी की हवेली में हम छुपछुपाई खेला करते थे...जब मै दस साल की थी...:)

कड़ाके की ठण्ड और हम बेचारे कवि...:)
कवियों की दशा क्या आपसे छुपी हुई है। इतनी तेज़ ठण्ड में स्टेज़ पर बैठा देना।  ऎसे में क्या कविता निकलती है? अब बताओ ये अलबेला जी न होते तो इन बीच वाले कवियों का क्या होता। मै तो क्या है पिलानी की हूँ इतनी सर्दी नही लगती भई लेकिन जो बाहर से आये थे...कुछ तो सोचो उनके बारे में...

लो जी तस्वीर देख कर ही आप सब समझ गये होंगे... अब जरा एक कप चाय हो जाये.. 

सुनीता शानू
  

अंतिम सत्य